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Union Budget 2025: बजट का शेयर बाजार पर क्या असर पड़ता है?

केंद्रीय बजट 2025, जो 1 फरवरी को पेश होगा, शेयर बाजार पर महत्वपूर्ण असर डालेगा। इसमें आर्थिक विकास उपाय, कर बदलाव, राजकोषीय घाटे का अनुमान और उपभोक्ता खर्च व निवेश को प्रभावित करने वाली नीतियां शामिल होंगी।
Union Budget 2025: बजट का शेयर बाजार पर क्या असर पड़ता है?
Union Budget 2025: बजट का शेयर बाजार पर क्या असर पड़ता है?

केंद्रीय बजट आर्थिक कैलेंडर की सबसे चर्चित घटनाओं में से एक होता है, जो अक्सर बाजार में उतार-चढ़ाव लाता है। निवेशक, व्यापारी और विश्लेषक सरकार की नीतियों के असर को समझने के लिए बजट प्रस्तावों पर बारीकी से नजर रखते हैं।

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इस साल 1 फरवरी 2025 को निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया जाने वाला बजट खास चर्चा में रहेगा। इस दिन शेयर बाजार खुले रहेंगे, जो एक दुर्लभ मौका है, जिससे निवेशकों को बजट से जुड़ी खबरों पर तुरंत प्रतिक्रिया देने का अवसर मिलेगा।

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बजट का सबसे अहम पहलू यह होता है कि यह आर्थिक विकास को कितना बढ़ावा देता है। अगर बजट में कर कटौती, बुनियादी ढांचे में निवेश या व्यवसायों को बढ़ावा देने वाले सुधार शामिल होते हैं, तो निवेशकों का भरोसा बढ़ता है और शेयर बाजार में सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिलती है।

शेयर बाजार उन उपायों को भी पसंद करता है जो लोगों की खर्च करने की क्षमता बढ़ाते हैं। टैक्स में कटौती, सीधी आय सहायता और महंगाई को नियंत्रित करने के प्रयासों से उपभोक्ताओं के पास अधिक पैसा बचता है, जिससे रिटेल, ऑटोमोबाइल और उपभोक्ता वस्तुओं जैसे क्षेत्रों को फायदा होता है।

टैक्स से जुड़े बदलाव भी शेयर बाजार को प्रभावित करते हैं। यदि कंपनियों और आम लोगों के लिए करों में कटौती की जाती है, तो इसका सीधा असर कॉर्पोरेट मुनाफे और उपभोक्ता खर्च पर पड़ता है, जिससे शेयरों की कीमतें बढ़ती हैं। वहीं, अगर टैक्स बढ़ाया जाता है, तो बाजार नकारात्मक प्रतिक्रिया दे सकता है।

इसके अलावा, शेयर बाजार के मुनाफे पर टैक्स में बदलाव, जैसे कि कैपिटल गेन और डिविडेंड इनकम पर कर, निवेशकों के रुझान को प्रभावित कर सकते हैं। कम टैक्स से निवेश को बढ़ावा मिलता है, जबकि ज्यादा टैक्स से बाजार की उत्सुकता घट सकती है।

बजट का असर म्यूचुअल फंड और बॉन्ड बाजार पर भी पड़ता है। अगर सरकार म्यूचुअल फंड निवेश को प्रोत्साहित करने वाले कदम उठाती है या बॉन्ड पर टैक्स नियमों में बदलाव करती है, तो इससे अधिक निवेशक आकर्षित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय सरकारी बॉन्ड को वैश्विक निवेश इंडेक्स में शामिल करने से विदेशी निवेश को बढ़ावा मिल सकता है।

राजकोषीय घाटे (फिस्कल डेफिसिट) का अनुमान भी बाजार की धारणा को प्रभावित करता है। अधिक घाटा महंगाई और कर्ज बढ़ाने का संकेत देता है, जिससे ब्याज दरें बढ़ सकती हैं। वहीं, कम घाटा वित्तीय अनुशासन का संकेत माना जाता है, जिससे बाजार में सकारात्मक माहौल बनता है।

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अतीत में केंद्रीय बजट का शेयर बाजार पर बड़ा असर पड़ा है। 1991 का बजट, जिसने भारत की अर्थव्यवस्था को उदार बनाया, बाजार में बड़े बदलाव का कारण बना और लंबी अवधि की वृद्धि का रास्ता खोला। इसी तरह, 1997 के बजट में की गई टैक्स कटौती को निवेशकों ने सकारात्मक रूप से लिया।

कुल मिलाकर, केंद्रीय बजट निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण घटना होती है। 1 फरवरी 2025 को पेश होने वाले बजट पर बाजार की पैनी नजर होगी, क्योंकि इसमें संभावित आर्थिक सुधार और नीतिगत बदलाव देखने को मिल सकते हैं, जो आने वाले साल में बाजार की दिशा तय करेंगे।

अस्वीकरण: यह लेख केवल शैक्षिक उद्देश्य के लिए है। इसमें उल्लिखित कंपनियों के आंकड़े समय के साथ बदल सकते हैं। दिए गए सिक्योरिटीज केवल उदाहरण के लिए हैं और कोई निवेश सलाह नहीं है।

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