फ्यूचर ट्रेडिंग एक डेरिवेटिव मार्केटिंग रणनीति है जिसमें निवेशक भविष्य में किसी परिसंपत्ति (जैसे स्टॉक्स, कमोडिटी, करेंसी) की पूर्वनिर्धारित कीमत पर खरीद या बिक्री का अनुबंध करते हैं। इसमें उच्च लाभ की संभावना होती है, लेकिन जोखिम भी अधिक होता है। ट्रेडिंग के लिए मार्केट रिसर्च, मार्जिन अकाउंट और रणनीतिक प्रबंधन आवश्यक होते हैं।
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फ्यूचर्स का अर्थ – Futures Meaning in Hindi
फ्यूचर्स एक डेरिवेटिव वित्तीय साधन है, जिसमें दो पक्ष किसी परिसंपत्ति (जैसे स्टॉक्स, कमोडिटीज, करेंसी) को भविष्य में एक निश्चित मूल्य और तिथि पर खरीदने या बेचने का अनुबंध करते हैं। इसमें निवेशक मार्जिन पर ट्रेडिंग कर सकते हैं, जिससे उन्हें अधिक रिटर्न की संभावना मिलती है, लेकिन जोखिम भी अधिक रहता है।
यह अनुबंध हेजिंग और सट्टा लगाने दोनों के लिए उपयोग किया जाता है, जहां व्यापारी बाजार के उतार-चढ़ाव से लाभ कमाने की कोशिश करते हैं। स्टॉक एक्सचेंजों पर फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स को मानकीकृत किया जाता है और इनका निपटान एक्सपायरी तिथि पर किया जाता है। निवेशकों के लिए उचित रणनीति, बाजार विश्लेषण और जोखिम प्रबंधन आवश्यक होते हैं।
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट की विशेषताएं – Features of Futures Contract in Hindi
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- मानकीकरण (Standardization): फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स एक्सचेंजों पर ट्रेडिंग को सुगम बनाने के लिए मात्रा और गुणवत्ता के मानकों के साथ मानकीकृत होते हैं।
- एक्सचेंज-ट्रेडेड (Exchange-Traded): ये कॉन्ट्रैक्ट्स एक्सचेंजों पर ट्रेड होते हैं, जो पारदर्शिता और तरलता सुनिश्चित करते हैं।
- मार्जिन आवश्यकताएँ (Margin Requirements): फ्यूचर्स ट्रेडिंग में, निवेशकों को मार्जिन जमा करना होता है, और लाभ-हानि का दैनिक निपटान किया जाता है।
- हेजिंग और सट्टा (Hedging and Speculation): फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स का उपयोग निवेशक मूल्य अस्थिरता के खिलाफ हेजिंग या बाजार के उतार-चढ़ाव पर सट्टा लगाने के लिए करते हैं।
- बाध्यकारी समझौता (Binding Agreement): ये कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते हैं, जो खरीदार और विक्रेता को पूर्वनिर्धारित तिथि और मूल्य पर अंतर्निहित परिसंपत्ति का लेन-देन करने के लिए बाध्य करते हैं।
फ्यूचर्स व्यापार कैसे करें? – How to Trade Futures in Hindi
फ्यूचर्स ट्रेडिंग शुरू करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:
- डीमैट और ट्रेडिंग खाता खोलें: एक विश्वसनीय ब्रोकर के साथ अपना डीमैट और ट्रेडिंग खाता खोलें।
- मार्जिन आवश्यकताओं को समझें: फ्यूचर्स ट्रेडिंग में, आपको अनुबंध मूल्य का एक प्रतिशत मार्जिन के रूप में जमा करना होता है।
- लॉट साइज और कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू जानें: प्रत्येक फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट का एक निश्चित लॉट साइज होता है, जो न्यूनतम ट्रेडिंग मात्रा को दर्शाता है।
- एक्सपायरी डेट पर ध्यान दें: फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स की एक निश्चित समाप्ति तिथि होती है, जिसके बाद वे अमान्य हो जाते हैं।
- जोखिम प्रबंधन रणनीति अपनाएं: स्टॉप-लॉस ऑर्डर का उपयोग करें और बाजार के रुझानों का विश्लेषण करके सूचित निर्णय लें।
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फ्यूचर ट्रेडिंग बेहतर क्यों है? – Why Futures Trading is Better in Hindi
फ्यूचर्स ट्रेडिंग कई कारणों से निवेशकों के लिए आकर्षक हो सकती है:
- उच्च उत्तोलन (Leverage): फ्यूचर्स ट्रेडिंग में, निवेशक को अनुबंध के कुल मूल्य का केवल एक हिस्सा, जिसे मार्जिन कहते हैं, जमा करना होता है। यह कम पूंजी निवेश के साथ बड़े पोजीशन लेने की अनुमति देता है, जिससे संभावित लाभ बढ़ सकते हैं।
- लिक्विडिटी (Liquidity): फ्यूचर्स बाजार में दैनिक आधार पर उच्च ट्रेडिंग वॉल्यूम होता है, जिससे निवेशकों के लिए आसानी से पोजीशन में प्रवेश और निकास करना संभव होता है।
- लचीलापन (Flexibility): निवेशक फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स के माध्यम से विभिन्न परिसंपत्तियों जैसे कमोडिटी, स्टॉक, बॉन्ड, मुद्रा आदि में निवेश कर सकते हैं, जिससे उनके पोर्टफोलियो में विविधता आती है।
- जोखिम प्रबंधन (Risk Management): फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स का उपयोग हेजिंग के लिए किया जा सकता है, जिससे निवेशक मूल्य अस्थिरता के खिलाफ अपने पोर्टफोलियो की सुरक्षा कर सकते हैं।
- लंबी और छोटी पोजीशन (Long and Short Positions): फ्यूचर्स ट्रेडिंग में, निवेशक बाजार के उतार-चढ़ाव के अनुसार लंबी (खरीद) या छोटी (बिक्री) पोजीशन ले सकते हैं, जिससे विभिन्न बाजार स्थितियों में लाभ कमाने की संभावना बढ़ती है।
फ्यूचर्स ट्रेडिंग के नुकसान – Disadvantages of Futures Trading in Hindi
फ्यूचर्स ट्रेडिंग में संभावित लाभ के साथ-साथ कई जोखिम और नुकसान भी शामिल हैं:
- उच्च उत्तोलन (Leverage) का जोखिम: फ्यूचर्स ट्रेडिंग में कम मार्जिन के साथ बड़े पोजीशन लिए जाते हैं, जिससे संभावित लाभ बढ़ता है, लेकिन नुकसान का जोखिम भी उतना ही अधिक होता है।
- बाजार की अस्थिरता (Market Volatility): बाजार में अचानक और अप्रत्याशित मूल्य परिवर्तनों के कारण ट्रेडर्स को महत्वपूर्ण नुकसान हो सकता है, विशेषकर यदि वे उचित जोखिम प्रबंधन रणनीतियाँ नहीं अपनाते हैं।
- लिक्विडिटी का संकट (Liquidity Crisis): कुछ फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स में पर्याप्त लिक्विडिटी नहीं होती, जिससे ट्रेडर्स के लिए अपनी पोजीशन को समय पर बंद करना या समायोजित करना कठिन हो सकता है।
- मार्जिन कॉल (Margin Call): यदि बाजार विपरीत दिशा में चलता है, तो ट्रेडर्स को अतिरिक्त मार्जिन जमा करने की आवश्यकता हो सकती है, जिसे पूरा न करने पर उनकी पोजीशन जबरन बंद की जा सकती है, जिससे और अधिक नुकसान हो सकता है।
- अप्रत्याशित घटनाओं का प्रभाव: प्राकृतिक आपदाओं, सरकारी नीतियों में बदलाव या अन्य अनियोजित घटनाओं के कारण बाजार में बड़े उतार-चढ़ाव हो सकते हैं, जो ट्रेडर्स के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं।
फ्यूचर्स ट्रेडिंग में मार्जिन का महत्व – Importance of Margin in Futures Trading in Hindi
फ्यूचर्स ट्रेडिंग में मार्जिन का महत्वपूर्ण योगदान होता है, जो निम्नलिखित बिंदुओं में स्पष्ट किया जा सकता है:
- प्रारंभिक मार्जिन (Initial Margin): फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में पोजीशन खोलने के लिए आवश्यक न्यूनतम राशि, जिसे प्रारंभिक मार्जिन कहते हैं। यह राशि एक्सचेंज द्वारा निर्धारित की जाती है और ट्रेडर को इसे अपने ब्रोकर के पास जमा करना होता है।
- रखरखाव मार्जिन (Maintenance Margin): एक्सचेंज द्वारा निर्धारित न्यूनतम राशि, जिसे ट्रेडर के खाते में किसी भी समय बनाए रखना आवश्यक है। यदि खाते का बैलेंस इस स्तर से नीचे जाता है, तो ट्रेडर को मार्जिन कॉल प्राप्त होती है।
- जोखिम प्रबंधन (Risk Management): मार्जिन ट्रेडिंग दोनों तरफ़ से की जा सकती है, अर्थात खरीद और बेचना, यह बाजार में प्रतिभूति और फंड की मांग और आपूर्ति को बढ़ाने में मदद करता है, जो बेहतर तरलता और प्रतिभूति के सहज मूल्य निर्माण में योगदान देता है।
- मार्जिन कॉल (Margin Call): यदि खाते का बैलेंस रखरखाव मार्जिन से नीचे गिरता है, तो ट्रेडर को अतिरिक्त धनराशि जमा करने के लिए मार्जिन कॉल मिलती है। यदि ट्रेडर इसे पूरा नहीं करता, तो उसकी पोजीशन स्वचालित रूप से समाप्त हो सकती है।
- मार्जिन आवश्यकताओं का निर्धारण (Determination of Margin Requirements): फ्यूचर्स एक्सचेंज, दलाल नहीं, फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के लिए मार्जिन दर निर्धारित करते हैं। हालांकि, ब्रोकरेज कंपनियां जोखिम कम करने के प्रयास में एक्सचेंज द्वारा निर्धारित मार्जिन दर से अधिक प्रीमियम चार्ज कर सकती हैं।
फ्यूचर्स ट्रेडिंग में जोखिम प्रबंधन – Risk Management in Futures Trading in Hindi
फ्यूचर्स ट्रेडिंग में जोखिम प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संभावित नुकसान को सीमित करने और पूंजी की सुरक्षा में मदद करता है। प्रभावी जोखिम प्रबंधन के लिए निम्नलिखित रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं:
- स्टॉप-लॉस ऑर्डर का उपयोग: स्टॉप-लॉस ऑर्डर सेट करने से, यदि बाजार आपके विपरीत चलता है, तो आपकी पोजीशन स्वचालित रूप से बंद हो जाती है, जिससे अत्यधिक नुकसान से बचा जा सकता है।
- पोजीशन साइजिंग: प्रत्येक ट्रेड में निवेश की जाने वाली राशि को सावधानीपूर्वक निर्धारित करना आवश्यक है। उचित पोजीशन साइजिंग से, आप अपने कुल पोर्टफोलियो का एक छोटा हिस्सा ही जोखिम में डालते हैं, जिससे बड़े नुकसान से बचा जा सकता है।
- विविधीकरण (डाइवर्सिफिकेशन): विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों में निवेश करके, आप किसी एक बाजार या संपत्ति में होने वाले नुकसान के प्रभाव को कम कर सकते हैं।
- उचित उत्तोलन (लीवरेज) का उपयोग: उत्तोलन का उपयोग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि अधिक उत्तोलन से संभावित लाभ बढ़ सकते हैं, लेकिन जोखिम भी बढ़ता है। अपनी जोखिम सहनशीलता के अनुसार ही उत्तोलन का उपयोग करें।
- मार्जिन आवश्यकताओं की निगरानी: मार्जिन कॉल से बचने के लिए, अपने खाते में मार्जिन स्तरों की नियमित रूप से जाँच करें और आवश्यकतानुसार धनराशि बनाए रखें।
फ्यूचर्स और ऑप्शंस में अंतर – Difference between Futures and Options in Hindi
फ्यूचर्स और ऑप्शंस दोनों ही डेरिवेटिव्स हैं, लेकिन इनके बीच महत्वपूर्ण अंतर हैं। नीचे तालिका में पाँच प्रमुख अंतर प्रस्तुत किए गए हैं:
| विशेषता | फ्यूचर्स (Futures) | ऑप्शंस (Options) |
| दायित्व | फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार और विक्रेता दोनों को निर्धारित तिथि पर एसेट खरीदने या बेचने का बाध्यकारी दायित्व होता है। | ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार को एसेट खरीदने या बेचने का अधिकार होता है, लेकिन वह बाध्य नहीं होता; जबकि विक्रेता बाध्य होता है। |
| प्रीमियम भुगतान | फ्यूचर्स में कॉन्ट्रैक्ट में प्रवेश करते समय कोई अग्रिम प्रीमियम भुगतान नहीं किया जाता। | ऑप्शंस में खरीदार को कॉन्ट्रैक्ट के लिए प्रीमियम का अग्रिम भुगतान करना पड़ता है। |
| जोखिम और लाभ | फ्यूचर्स में संभावित लाभ और हानि दोनों असीमित होते हैं, क्योंकि मूल्य में किसी भी दिशा में बड़े बदलाव हो सकते हैं। | ऑप्शंस में खरीदार का जोखिम प्रीमियम तक सीमित होता है, जबकि लाभ सैद्धांतिक रूप से असीमित हो सकता है। |
| व्यायाम (Exercise) | फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स को समाप्ति तिथि पर स्वचालित रूप से निादित किया जाता है। | ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट्स को खरीदार की इच्छा के अनुसार समाप्ति तिथि तक किसी भी समय (अमेरिकी विकल्प) या केवल समाप्ति पर (यूरोपीय विकल्प) निष्पादित किया जा सकता है। |
| उपयोग | फ्यूचर्स का उपयोग अक्सर हेजिंग और सट्टेबाजी के लिए किया जाता है, विशेष रूप से कमोडिटी और वित्तीय बाजारों में। | ऑप्शंस का उपयोग भी हेजिंग और सट्टेबाजी के लिए किया जाता है, लेकिन वे निवेशकों को अधिक रणनीतिक लचीलापन प्रदान करते हैं। |
फ्यूचर्स ट्रेडिंग में टेक्निकल एनालिसिस – Technical Analysis in Futures Trading in Hindi
फ्यूचर्स ट्रेडिंग में तकनीकी विश्लेषण (Technical Analysis) एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जो ऐतिहासिक मूल्य और ट्रेडिंग वॉल्यूम डेटा का अध्ययन करके भविष्य के मूल्य परिवर्तनों की भविष्यवाणी करने में मदद करता है। यह विश्लेषण विभिन्न चार्ट पैटर्न, तकनीकी संकेतकों और ट्रेंड एनालिसिस के माध्यम से किया जाता है।
प्रमुख तकनीकी विश्लेषण उपकरण:
- चार्ट पैटर्न (Chart Patterns): चार्ट पैटर्न्स, जैसे कि ट्रायंगल्स, कप एंड हैंडल, डबल टॉप और डबल बॉटम, मूल्य प्रवृत्तियों की पहचान करने में सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए, ट्रायंगल पैटर्न्स संभावित रिवर्सल या कंटिन्यूएशन का संकेत देते हैं।
- तकनीकी संकेतक (Technical Indicators): मूविंग एवरेज, रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स (RSI), और मूविंग एवरेज कन्वर्जेंस डाइवर्जेंस (MACD) जैसे संकेतक मूल्य प्रवृत्तियों और संभावित रिवर्सल पॉइंट्स की पहचान करने में मदद करते हैं।
- ट्रेंड एनालिसिस (Trend Analysis): मूल्य प्रवृत्तियों की दिशा और ताकत का विश्लेषण करके, ट्रेडर्स उपयुक्त एंट्री और एग्ज़िट पॉइंट्स निर्धारित कर सकते हैं। ट्रेंड-फॉलोइंग इंडिकेटर्स, जैसे मूविंग एवरेज, इस प्रक्रिया में सहायक होते हैं |
फ्यूचर्स ट्रेडिंग में रणनीतियां – Strategies in Futures Trading in Hindi
फ्यूचर्स ट्रेडिंग की प्रमुख रणनीतियाँ:
- ट्रेंड-फॉलोइंग रणनीति:
बाजार के मौजूदा ट्रेंड को पहचानकर उसी दिशा में ट्रेड किया जाता है। मूविंग एवरेज और RSI संकेतकों का उपयोग किया जाता है। - स्प्रेड ट्रेडिंग रणनीति:
एक ही या संबंधित कमोडिटी के दो फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स के मूल्य अंतर से लाभ कमाने की रणनीति। इसमें जोखिम अपेक्षाकृत कम होता है। - ब्रेकआउट रणनीति:
जब किसी एसेट की कीमत महत्वपूर्ण सपोर्ट या रेजिस्टेंस स्तर को पार करती है, तो नई प्रवृत्ति पकड़ने के लिए ट्रेड एंट्री की जाती है। - रिवर्सल रणनीति:
ओवरसोल्ड या ओवरबॉट स्थिति में बाजार ट्रेंड के उलटने पर ट्रेड लिया जाता है। RSI और MACD संकेतकों का उपयोग किया जाता है। - हैजिंग रणनीति:
मूल्य अस्थिरता के जोखिम को कम करने के लिए फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स का उपयोग किया जाता है। कंपनियां और निवेशक इस रणनीति को अपनाते हैं। - स्कैल्पिंग रणनीति:
दिन में कई छोटे ट्रेड लेकर तेजी से छोटे लाभ कमाने की रणनीति। यह हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग तकनीकों पर आधारित होती है।
फ्यूचर के बारे में निष्कर्ष
फ्यूचर्स ट्रेडिंग में सफल होने के लिए, ट्रेडर्स को बाजार की गहन समझ, उचित जोखिम प्रबंधन, और प्रभावी रणनीतियों का उपयोग करना आवश्यक है। मार्जिन आवश्यकताओं और उत्तोलन के प्रभाव को समझना भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये कारक संभावित लाभ और हानि दोनों को प्रभावित करते हैं।
नियमित रूप से बाजार के रुझानों का विश्लेषण करें और सूचित निर्णय लेने के लिए तकनीकी और मौलिक विश्लेषण का उपयोग करें। साथ ही, एक विश्वसनीय ब्रोकर के साथ साझेदारी करना और एक मजबूत ट्रेडिंग योजना विकसित करना फ्यूचर्स ट्रेडिंग में सफलता की कुंजी है।
फ्यूचर्स के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
फ्यूचर्स ट्रेडिंग एक प्रकार का डेरिवेटिव ट्रेडिंग है जिसमें किसी एसेट (जैसे स्टॉक, कमोडिटी या करेंसी) को भविष्य की निर्धारित तारीख और कीमत पर खरीदने या बेचने का अनुबंध किया जाता है।
मार्जिन फ्यूचर्स ट्रेडिंग में आवश्यक जमा राशि होती है, जो एक्सचेंज और ब्रोकर द्वारा निर्धारित की जाती है। यह आमतौर पर अनुबंध मूल्य का 5-15% होता है।
फ्यूचर्स ट्रेडिंग में न्यूनतम निवेश अनुबंध के आकार, मार्जिन आवश्यकताओं और परिसंपत्ति के प्रकार पर निर्भर करता है। आमतौर पर, यह ₹10,000 से ₹50,000 के बीच हो सकता है।
स्टॉप लॉस एक महत्वपूर्ण जोखिम प्रबंधन उपकरण है, जो किसी अनुबंध के नुकसान को सीमित करता है। यह स्वचालित रूप से ट्रेड को बंद कर देता है जब मूल्य एक निश्चित स्तर तक गिर जाता है।
हां, फ्यूचर्स ट्रेडिंग में इंट्राडे ट्रेडिंग संभव है। ट्रेडर्स एक ही दिन में पोजीशन खोल और बंद कर सकते हैं, जिससे वे अल्पकालिक मूल्य परिवर्तनों से लाभ कमा सकते हैं।
फ्यूचर्स ट्रेडिंग शुरू करने के लिए पैन कार्ड, आधार कार्ड, बैंक स्टेटमेंट, इनकम प्रूफ और ट्रेडिंग/डीमैट खाता आवश्यक होता है। कुछ ब्रोकर इनकम प्रमाण की मांग कर सकते हैं।
रोलओवर का अर्थ है एक फ्यूचर्स अनुबंध की एक्सपायरी से पहले इसे अगले महीने के अनुबंध में स्थानांतरित करना। यह ट्रेडर्स को अपनी पोजीशन को बनाए रखने की सुविधा देता है।
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट की एक्सपायरी वह तारीख होती है जब अनुबंध समाप्त होता है। यदि एक्सपायरी से पहले पोजीशन नहीं बदली जाती, तो इसे नकद या भौतिक रूप से निपटाना पड़ता है।
लेवरेज ट्रेडर्स को छोटे मार्जिन के साथ बड़ी पोजीशन लेने की अनुमति देता है। हालांकि, यह संभावित लाभ बढ़ाने के साथ-साथ जोखिम को भी बढ़ा सकता है, जिससे सावधानी आवश्यक है।
फ्यूचर्स ट्रेडिंग नए ट्रेडर्स के लिए जोखिमपूर्ण हो सकती है क्योंकि इसमें उच्च अस्थिरता और मार्जिन की आवश्यकता होती है। नए निवेशकों को पहले डेमो ट्रेडिंग या उचित मार्गदर्शन के साथ शुरुआत करनी चाहिए।
आज ही 15 मिनट में एलिस ब्लू के साथ निःशुल्क डीमैट खाता खोलें! स्टॉक, म्यूचुअल फंड, बॉन्ड और आईपीओ में निःशुल्क निवेश करें। साथ ही, हर ऑर्डर पर सिर्फ़ ₹20/ऑर्डर ब्रोकरेज पर ट्रेड करें।
क्या आप जानते हैं कि ऑनलाइन ट्रेडिंग के और भी विभिन्न रूप हैं और इससे संबंधित अन्य महत्वपूर्ण अवधारणाएं हैं जिन्हें आपको जानना चाहिए। इन्हें विस्तार से पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लेखों पर क्लिक करें।
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