होल्डिंग्स का मतलब है आपके पास लंबे समय के लिए रखे गए शेयर या निवेश, जबकि पोजिशन दर्शाता है आपने कौन-से शेयर या डेरिवेटिव्स में ट्रेडिंग की है—चाहे वह खरीद (लॉन्ग) हो या बिक्री (शॉर्ट)। पोजिशन आमतौर पर अल्पकालिक होती है, जबकि होल्डिंग्स दीर्घकालिक निवेश दर्शाती हैं।
Table of Contents
शेयर बाजार में पोजिशन क्या है? – Position Meaning In Hindi
शेयर बाजार में पोजिशन का अर्थ होता है किसी स्टॉक या डेरिवेटिव में निवेशक द्वारा ली गई स्थिति, जैसे कि खरीद (लॉन्ग पोजिशन) या बिक्री (शॉर्ट पोजिशन)। लॉन्ग पोजिशन में निवेशक उम्मीद करता है कि स्टॉक का भाव बढ़ेगा, जबकि शॉर्ट पोजिशन में वह भाव घटने पर मुनाफा कमाना चाहता है।
पोजिशन इन्ट्राडे, स्विंग या डेरिवेटिव्स के जरिए ली जा सकती है और इसमें जोखिम भी शामिल होता है। ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म जैसे Alice Blue और Upstox पर निवेशक अपनी पोजिशन को ट्रैक, मोडिफाई या स्क्वेयर ऑफ कर सकते हैं। सही समय पर पोजिशन बंद करना मुनाफे या नुकसान को निर्धारित करता है।
शेयर बाजार में होल्डिंग्स का अर्थ – Holdings Meaning In Share Market In Hindi
शेयर बाजार में होल्डिंग्स का अर्थ है वे शेयर, म्यूचुअल फंड या अन्य सिक्योरिटीज़ जो किसी निवेशक ने खरीदी हैं और अभी तक बेची नहीं हैं। ये निवेश निवेशक के डिमैट अकाउंट में दिखाई देते हैं और लंबे समय तक रखने पर पूंजी वृद्धि (Capital Appreciation) का लाभ देते हैं।
होल्डिंग्स आमतौर पर लॉन्ग टर्म निवेश को दर्शाती हैं और निवेशक इन्हें समय के साथ बेचकर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म जैसे Alice Blue या Zerodha अपने यूज़र को होल्डिंग्स सेक्शन में स्टॉक्स की कीमत, प्रतिशत बदलाव और कुल वैल्यू की जानकारी देते हैं।
होल्डिंग्स बनाम पोजिशन – Holdings Vs Positions In Hindi
यह रहा “होल्डिंग्स बनाम पोजिशन” का अंतर तालिका के रूप में:
बिंदु | होल्डिंग्स (Holdings) | पोजिशन (Positions) |
अर्थ | डिमैट अकाउंट में रखे गए शेयर या निवेश | ट्रेडिंग के दौरान ली गई खरीद या बिक्री की स्थिति |
समयावधि | आमतौर पर लंबी अवधि के लिए | शॉर्ट टर्म (Intraday, Futures & Options) |
उद्देश्य | पूंजी में वृद्धि और लाभांश प्राप्त करना | त्वरित लाभ कमाने के लिए व्यापारिक स्थिति लेना |
जोखिम स्तर | अपेक्षाकृत कम | अपेक्षाकृत अधिक, विशेषकर डेरिवेटिव्स में |
ट्रैकिंग प्लेटफॉर्म | होल्डिंग्स टैब (जैसे Alice Blue में) | पोजिशन टैब (Zerodha, Alice Blue जैसे प्लेटफॉर्म में) |
क्लोजिंग प्रक्रिया | बिक्री द्वारा बंद की जाती है | स्क्वेयर ऑफ या एक्सपायरी से समाप्त होती है |
पोजिशन कैसे बनाई जाती है? – How to Create a Position in Hindi
शेयर बाजार में पोजिशन बनाना ट्रेडिंग की एक जरूरी प्रक्रिया है, जिसमें आप किसी स्टॉक, फ्यूचर्स या ऑप्शंस में खरीद (लॉन्ग) या बिक्री (शॉर्ट) करते हैं। यह प्रक्रिया कुछ स्टेप्स के ज़रिए पूरी की जाती है:
- ब्रोकरेज अकाउंट खोलें
किसी ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म जैसे Alice Blue, Zerodha या Upstox पर अकाउंट खोलें जो ट्रेडिंग सुविधा देते हैं। - मार्केट रिसर्च करें
जिस स्टॉक या डेरिवेटिव में पोजिशन लेनी है, उसका तकनीकी और फंडामेंटल विश्लेषण करें। - ऑर्डर टाइप चुनें
लॉन्ग पोजिशन के लिए खरीद (Buy) और शॉर्ट पोजिशन के लिए बेचने (Sell) का विकल्प चुनें। - इन्ट्राडे या डिलिवरी मोड चुनें
अगर पोजिशन उसी दिन बंद करनी है तो इन्ट्राडे; अन्यथा डिलिवरी या फ्यूचर्स ऑप्शन चुनें। - स्टॉप लॉस और टारगेट सेट करें
जोखिम को सीमित करने के लिए स्टॉप लॉस और लाभ लेने के लिए टारगेट मूल्य तय करें। - ऑर्डर कन्फर्म करें और पोजिशन बनाएं
सभी डिटेल्स भरने के बाद ऑर्डर सबमिट करें और पोजिशन बन जाएंगी, जिसे आप ट्रेडिंग पोर्टल पर ट्रैक कर सकते हैं।
पोजीशन के प्रकार क्या हैं? – Types of Positions in Hindi
शेयर बाजार में पोजिशन मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं, जिनका चयन निवेशक या ट्रेडर अपने उद्देश्य और रणनीति के अनुसार करता है:
- लॉन्ग पोजिशन (Long Position)
जब कोई निवेशक किसी शेयर को खरीदकर यह उम्मीद करता है कि भविष्य में उसका मूल्य बढ़ेगा, तो इसे लॉन्ग पोजिशन कहते हैं। यह डिलिवरी आधारित ट्रेडिंग या फ्यूचर्स में हो सकती है। - शॉर्ट पोजिशन (Short Position)
जब निवेशक स्टॉक को बिना खरीदे बेच देता है और उम्मीद करता है कि भाव गिरने पर वह उसे सस्ते में खरीदकर मुनाफा कमाएगा, तो इसे शॉर्ट पोजिशन कहते हैं। यह आमतौर पर इन्ट्राडे और डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग में होता है।
होल्डिंग के प्रकार क्या हैं? – Types of Holdings in Hindi
शेयर बाजार में होल्डिंग्स के विभिन्न प्रकार होते हैं, जो निवेश की प्रकृति और समयावधि पर आधारित होते हैं। मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार की होल्डिंग्स होती हैं:
- इक्विटी होल्डिंग्स (Equity Holdings)
निवेशक द्वारा शेयरों में की गई खरीदारी को इक्विटी होल्डिंग्स कहते हैं। यह डिमैट अकाउंट में रखे गए स्टॉक्स होते हैं जो लाभांश और पूंजी वृद्धि के लिए खरीदे जाते हैं। - म्यूचुअल फंड होल्डिंग्स (Mutual Fund Holdings)
जब कोई निवेशक म्यूचुअल फंड स्कीम में निवेश करता है, तो उसकी यूनिट्स को होल्डिंग्स में गिना जाता है। ये लिक्विड, डेट या इक्विटी आधारित हो सकती हैं। - बॉन्ड्स और डिबेंचर्स (Bond & Debenture Holdings)
फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज जैसे सरकारी बॉन्ड या कॉर्पोरेट डिबेंचर्स को होल्डिंग्स के रूप में डिमैट में रखा जाता है और इन्हें परिपक्वता तक होल्ड किया जाता है। - ETF और इंडेक्स फंड होल्डिंग्स
एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ETFs) या इंडेक्स फंड्स में निवेश भी होल्डिंग्स कहलाते हैं, जो इंडेक्स के प्रदर्शन को ट्रैक करते हैं और डिमैट में यूनिट्स के रूप में दिखते हैं। - REITs और INVITs होल्डिंग्स
रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (REITs) और इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (InvITs) में की गई खरीद भी होल्डिंग्स मानी जाती है, जो नियमित रिटर्न और ग्रोथ प्रदान करती हैं।
होल्डिंग कब दिखती है और पोजिशन कब हटती है? – When Do Holdings Appear and Positions Settle in Hindi
जब आप किसी शेयर को खरीदते हैं, तो वह T+1 दिन (ट्रेडिंग के अगले दिन) आपके डिमैट अकाउंट की होल्डिंग्स में दिखाई देता है। Zerodha और Alice Blue जैसे प्लेटफॉर्म पर इसे “Holdings” सेक्शन में देखा जा सकता है।
वहीं, पोजिशन तब हटती है जब आप उसे स्क्वेयर ऑफ कर देते हैं या वह एक्सपायरी पर अपने आप समाप्त हो जाती है। इन्ट्राडे पोजिशन उसी दिन क्लोज हो जाती है, जबकि फ्यूचर्स या ऑप्शंस की पोजिशन एक्सपायरी डेट पर बंद होती है।
ट्रेडिंग डे के अंत में पोजिशन कैसे क्लियर होती है? – How Positions Settle at End of Day in Hindi
ट्रेडिंग डे के अंत में, इन्ट्राडे पोजिशन अपने आप स्क्वेयर ऑफ हो जाती है अगर आप उसे मैन्युअली बंद नहीं करते। यह प्रक्रिया ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म जैसे Zerodha, Alice Blue या Upstox द्वारा की जाती है ताकि कोई ओपन ट्रेड न बचा रहे।
यदि आपने डिलिवरी पोजिशन ली है (यानि आपने शेयर खरीदे और रखने का इरादा है), तो वह T+1 सेटलमेंट सिस्टम के तहत अगले दिन होल्डिंग्स में चली जाती है। वहीं, डेरिवेटिव्स (F&O) की पोजिशन एक्सपायरी डेट या मैन्युअल स्क्वेयर ऑफ पर सेटल होती है।
विषय को समझने के लिए और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए, नीचे दिए गए संबंधित स्टॉक मार्केट लेखों को अवश्य पढ़ें।
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होल्डिंग्स और पोजीशन्स के बारे में संक्षिप्त सारांश
- पोजिशन का मतलब है किसी स्टॉक या डेरिवेटिव में खरीदी (लॉन्ग) या बिक्री (शॉर्ट) की गई ट्रेडिंग स्थिति, जिसे ट्रेडर कुछ समय के लिए होल्ड करता है।
- होल्डिंग्स वे शेयर या सिक्योरिटीज हैं जो आपने खरीदे हैं और अब तक बेचे नहीं हैं। ये डिमैट अकाउंट में लॉन्ग टर्म निवेश दर्शाती हैं।
- होल्डिंग्स दीर्घकालिक निवेश होती हैं जबकि पोजिशन अल्पकालिक ट्रेड होती है। होल्डिंग डिलिवरी आधारित होती है जबकि पोजिशन में इन्ट्राडे या F&O ट्रेड शामिल होते हैं।
- ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर स्टॉक या डेरिवेटिव का चुनाव कर, ऑर्डर प्लेस करके और स्टॉप लॉस व टारगेट सेट करके पोजिशन बनाई जाती है।
- पोजिशन मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं: लॉन्ग पोजिशन (खरीद) और शॉर्ट पोजिशन (बिक्री), जो ट्रेडर के बाजार दृष्टिकोण पर निर्भर करती हैं।
- इक्विटी, म्यूचुअल फंड्स, बॉन्ड्स, ETFs और REITs जैसी कई होल्डिंग्स होती हैं जो अलग-अलग प्रकार के निवेश दर्शाती हैं।
- होल्डिंग्स T+1 दिन पर दिखती हैं, जबकि पोजिशन स्क्वेयर ऑफ करने या एक्सपायरी पर हटती है।
- इन्ट्राडे पोजिशन खुद-ब-खुद स्क्वेयर ऑफ हो जाती है। डिलिवरी ट्रेड T+1 सेटल होती है, और F&O पोजिशन एक्सपायरी पर क्लोज होती है।
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होल्डिंग्स बनाम पोजीशन्स के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
होल्डिंग्स उन शेयरों को कहते हैं जिन्हें आपने खरीदा और डिमैट में रखा है। वहीं, पोजीशन ट्रेडिंग के दौरान लिया गया क्रय या विक्रय आदेश होता है, जो इन्ट्राडे या डेरिवेटिव्स में होता है। होल्डिंग दीर्घकालिक और पोजीशन अल्पकालिक होती है।
स्टॉक्स में पोजीशन्स का अर्थ है किसी शेयर में खरीदी (लॉन्ग) या बिक्री (शॉर्ट) की गई स्थिति। यह दर्शाता है कि निवेशक ने किस दिशा में बाजार को लेकर ट्रेड लिया है। यह स्थिति मार्केट ओपन रहते हुए सक्रिय रहती है।
यदि आप Reliance का शेयर 1000 रुपये पर खरीदते हैं तो यह लॉन्ग पोजीशन है। वहीं, यदि आप Infosys को बेचकर बाद में सस्ता खरीदना चाहते हैं, तो यह शॉर्ट पोजीशन कहलाती है। ये दोनों ट्रेडिंग रणनीतियों के उदाहरण हैं।
होल्डिंग्स का मतलब है वे शेयर या सिक्योरिटीज जो आपके डिमैट अकाउंट में मौजूद हैं और जिन्हें आपने अभी तक नहीं बेचा है। ये निवेश आप लंबे समय के लिए रखते हैं और इनसे लाभांश या पूंजी वृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
अगर आपने HDFC Bank, TCS और Infosys के शेयर खरीदे हैं और वे आपके डिमैट अकाउंट में दिख रहे हैं, तो ये आपकी होल्डिंग्स हैं। इसी तरह, म्यूचुअल फंड यूनिट्स और बॉन्ड्स भी होल्डिंग्स में गिने जाते हैं।
शेयर होल्ड करने से आपको लाभांश, बोनस शेयर और लॉन्ग टर्म पूंजी वृद्धि का फायदा मिलता है। इसके अलावा, अच्छी कंपनियों में निवेश से पोर्टफोलियो मजबूत होता है और रिटर्न भी बेहतर मिल सकते हैं।
इन्ट्राडे पोजीशन केवल एक दिन तक रहती है और उसी दिन स्क्वेयर ऑफ करनी होती है। फ्यूचर्स/ऑप्शंस पोजीशन एक्सपायरी तक (1 सप्ताह या 1 महीना) हो सकती है। डिलिवरी पोजीशन आप अनिश्चित काल तक रख सकते हैं।
हां, आप एक ही अकाउंट में होल्डिंग और ट्रेडिंग दोनों कर सकते हैं। आप कुछ शेयर लॉन्ग टर्म के लिए होल्ड कर सकते हैं और वहीं दूसरी ओर, इन्ट्राडे या डेरिवेटिव्स में ट्रेडिंग कर सकते हैं। दोनों अलग टैब में ट्रैक किए जाते हैं।
MTF (Margin Trading Facility) में आप शेयर डिलिवरी लेकर कुछ दिन तक रख सकते हैं लेकिन मार्जिन पर। इन्ट्राडे पोजिशन उसी दिन के लिए होती है और स्क्वेयर ऑफ करनी होती है। MTF में ब्याज लगता है, जबकि इन्ट्राडे में नहीं।
जब आप शेयर खरीदते हैं, तो वह T+1 (ट्रेडिंग के अगले दिन) आपके डिमैट अकाउंट में होल्डिंग्स के रूप में दिखने लगता है। हालांकि, कुछ ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म्स पर यह रात में या अगले कारोबारी दिन सुबह अपडेट होता है।
हम आशा करते हैं कि आप विषय के बारे में स्पष्ट हैं। लेकिन ट्रेडिंग और निवेश के संबंध में और भी अधिक सीखने और अन्वेषण करने के लिए, हम आपको उन महत्वपूर्ण विषयों और क्षेत्रों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें आपको जानना चाहिए:
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